जल जीवन मिशन योजना बना अधिकारियों का कमीशन योजना करोड़ों खर्च, फिर भी बूंद-बूंद पानी को तरस रहे राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र।

ग्रामीणों की प्यास नहीं बुझा पाया जल जीवन मिशन, लचर प्रशासन और भ्रष्टाचार के चलते योजना फेल

कवर्धा। केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘जल जीवन मिशन’ का उद्देश्य हर ग्रामीण के घर तक शुद्ध पेयजल पहुंचाना था, लेकिन कबीरधाम जिले में यह योजना अपने लक्ष्य से कोसों दूर नजर आ रही है। प्रशासनिक लापरवाही, ठेकेदारों की मनमानी और सरकारी मशीनरी की उदासीनता के चलते ग्रामीण आज भी पीने के लिए झिरिया और कुओं का दूषित पानी पीने को मजबूर हैं। खासकर राष्ट्रपति के ‘दत्तक पुत्र’ बैगा आदिवासी समुदाय के लोग आज भी शुद्ध जल से वंचित हैं।

टोंटियां लगी, सिर्फ दिखाने के लेकिन पानी नहीं आया।

वनांचल के पहाड़ी क्षेत्रों में जल संकट विकराल रूप ले चुका है। यहां टोंटियां तो लग गईं, लेकिन पानी नहीं आया। ठेकेदारों ने घटिया जल संरचनाएं खड़ी कर दीं, पाइपलाइन बिछा दीं, लेकिन जल स्रोत ही तैयार नहीं किए। कई गांवों में बोरवेल खुदे ही नहीं, और जहां खुदे, वे नाकाम हो गए। तेलियापानी, लेदरा, कादावानी, बनीसेंदूरखार, छिन्दीडीह, आगरपानी, बिरहुलडीह जैसे गांवों में जल जीवन मिशन केवल कागजों पर साकार हुआ है।

संविक्षा बैठकें बेअसर, प्रशासन को नहीं है सही गलत का फर्क बांध रखी है आंखों पर पट्टी।

कबीरधाम जिले में हर महीने चार बार विभागीय समीक्षा बैठकें की जाती हैं। लेकिन ये बैठकें केवल कागजी खानापूर्ति बनकर रह गई हैं। अधिकारियों को बिना निरीक्षण किए गलत जानकारियां दी जाती हैं, और इन झूठी रिपोर्टों के आधार पर योजनाओं की समीक्षा की जाती है। सोशल मीडिया और समाचार माध्यमों में जल संकट की खबरें आम हैं, लेकिन प्रशासन ध्यान नहीं देता।

गर्मी में जल संकट चरम पर, खेती भी हो रही है प्रभावित।

पंडरिया विकासखंड के रेड जोन वाले कई गांवों में जल संकट ने विकराल रूप ले लिया है। किसान सिंचाई के अभाव में धान की 70% फसल गंवा चुके हैं। पौनी, बांधा, पुषेरा, पेंड्रीखुर्द, किशनगढ़, महली, बीजभंठा, डबरी, तोरला, नवापारा, भुवालपुर सहित दर्जनों गांवों में सरकारी हैंडपंप सूख गए हैं और जल जीवन मिशन के तहत बनी टंकियां शोपीस बन गई हैं।

भ्रष्टाचार के लिए वरदान बना  योजना।

सरकारी अफसरों और ठेकेदारों की मिलीभगत से यह योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है। बिना पानी के बोरवेल, अधूरी पाइपलाइन, घटिया जल संरचनाएं और निरीक्षण की कमी ने इस योजना को पूरी तरह फेल कर दिया है। सरकारी अधिकारी कमीशनखोरी में लिप्त हैं, ठेकेदार पैसा लेकर भाग रहे हैं, और जनता पानी के लिए तरस रही है।

जरूरत सही मॉनिटरिंग और सख्त कार्रवाई की।

यदि प्रशासन स्थलीय निरीक्षण करे और दोषी अधिकारियों और ठेकेदारों पर कड़ी कार्रवाई हो, तो जल जीवन मिशन को सही मायनों में सफल बनाया जा सकता है। सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, लेकिन जब तक ईमानदारी से क्रियान्वयन और मॉनिटरिंग नहीं होगी, तब तक ग्रामीणों को शुद्ध जल उपलब्ध कराना केवल एक सपना ही रहेगा।

बिन पानी सब सून!

जल संकट आज केवल एक समस्या नहीं, बल्कि एक गंभीर चुनौती बन चुका है। यदि समय रहते इसे हल नहीं किया गया, तो भविष्य में इसके भयावह परिणाम देखने को मिल सकते हैं।

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